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एब्स्ट्रैक्ट:राजस्थान में दिल्ली मुंबई रेल मार्ग रोके बैठे गुर्जर समुदाय और सरकार के बीच बातचीत में कोई नतीजा नही
राजस्थान में दिल्ली मुंबई रेल मार्ग रोके बैठे गुर्जर समुदाय और सरकार के बीच बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकला है. गुर्जर अपनी बिरादरी के लिए आरक्षण मांग रहे हैं.
वे शुक्रवार शाम से रेल मार्ग पर जाम लगाए हुए है. इससे रेल मार्ग बाधित हो गया है. सरकार ने आंदोलनकारियों से शांति बनाये रखने की अपील की है.
विपक्ष ने कांग्रेस सरकार से गुर्जर समुदाय से बातचीत कर कोई समाधान निकालने की मांग की है.
आंदोलन को देखते हुए सड़क और रेल मार्गो पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है. विधि विशेषज्ञ कहते हैं मौजूदा क़ानूनी प्रावधान आरक्षण की सीमा बढ़ाने की इजाज़त नहीं देते हैं.
राज्य सरकार ने हालत की नजाकत समझते हुए अपने तीन मंत्रियों की कमेटी को गुर्जर नेताओं से बातचीत कर कोई समाधान निकालने का काम सौंपा है.
इसमें पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह, स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा और सामाजिक न्याय मंत्री भंवर लाल शामिल है. इनके साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी नीरज पवन को भी लगाया गया है.
पर्यटन मंत्री सिंह और आइएएस पवन शनिवार को मौके पर पहुंचे और आन्दोलनारियों से बातचीत की. मगर कोई समाधान नहीं निकला.
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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि राज्य के स्तर पर जो कुछ हो सकता था, किया गया है.
गहलोत ने कहा, उनकी मांगों का ताल्लुक केंद्र से हो सकता है. संविधान में संशोधन के बगैर कुछ हो नहीं सकता है."
उन्होंने कहा कि जैसे अभी केंद्र ने दस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया है, उसी तरह कोई रास्ता निकले तब आन्दोलनारियों की मांगें पूरी हो सकती हैं.
इसी माहौल के बीच भरतपुर के पूर्व राजघराने के सदस्य विश्वेन्द्र सिंह और आइएएस अधिकारी पवन पथरीले मार्ग से उस स्थान पर पहुंचे जहाँ गुर्जर रेल मार्ग पर पड़ाव डाले बैठे हैं.
पर्यटन मंत्री सिंह ने आंदोलन का नेतृत्व कर रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला से मुलाकात की और कहा सरकार की मंशा ठीक है पर समाधान के लिए गुर्जर समुदाय का भी सहयोग चाहिए.
सिंह ने प्रस्ताव रखा कि गुर्जर समुदाय को एक कमेटी नामित करनी चाहिए जो बातचीत में शिरकत कर सके. मगर गुर्जर समुदाय इसके लिए तैयार नहीं हुआ.
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इमेज कॉपीरइटAFP'बातचीत रेल की पटरियों पर'
गुर्जर नेताओ ने कहा जो भी बातचीत होगी, रेल की पटरियों पर ही होगी.
सरकार की पहल पर पवन ने कहा सरकार की गंभीरता का अंदाज इससे ही लगाया जा सकता है कि शासन ने अपने एक मंत्री और एक अधिकारी को रेल पटरियों पर भेजा है.
पवन ने गुर्जर नेताओं से मुलाकत के बाद कहा. सरकार कोई स्थाई और क़ानूनी रूप से मजबूत समाधान निकालना चाहती है. ताकि पहले की तरह आरक्षण पर कोई क़ानूनी पेचदगी पैदा न हो."
केंद्र में दस फ़ीसदी आरक्षण की घोषणा के बाद से ही गुर्जर नेता आंदोलन की चेतावनी दे रहे थे. इसके लिए गुर्जर नेताओं ने शुक्रवार तक की समय सीमा तय की थी.
इसके बाद वे अपने आराध्य देव नारायण की जयकार करते हुए सवाई माधोपुर ज़िले में मलारना और निमोदा स्टेशनों के बीच रेल पटरियों पर जमा हो गए और रेल मार्ग बाधित कर दिया.
पथरीली धरती और पहाड़ियां इसे विकट बनाती हैं. यहीं से दिल्ली मुंबई रेल मार्ग गुजरता है. इसके निकट अनेक गुर्जर बहुल गांव हैं.
रेल यातायात के लिहाज से यह काफ़ी व्यस्त और महत्वपूर्ण माना जाता है. हर दिन यह रेल मार्ग अपने गंतव्य के लिए दौड़ती रेल गाड़ियों की आवाजाही से निनादित रहता था. मगर अब इस रेल मार्ग पर आंदोलनकारियों का बसेरा है.
रेलवे के अधिकारियों के अनुसार 'कुछ रेलगाड़ियां रद्द करनी पड़ी हैं जबकि बीस से अधिक रेल गाड़ियों का मार्ग बदलना पड़ा है.
करौली ज़िले में भी एक स्थान पर आंदोलनकारियों ने सड़क मार्ग अवरुद्ध कर रखा है.
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नया नहीं है गुर्जर आरक्षण आंदोलन
गुर्जर समुदाय के लिए न तो यह भूगोल नया है न ही रेल मार्ग और आंदोलन की यह शैली.
इसके पहले गुर्जर समुदाय ने वर्ष 2006 में करौली ज़िले के हिण्डोन में रेल पार्टियों पर कब्ज़ा कर लिया और रेल मार्ग बाधित कर दिया था.
इसके बाद 21 मई 2007 के दिन गुर्जर अपनी मांगों को लेकर दौसा ज़िले में जयपुर आगरा राजमार्ग पर जमा हो गए और आंदोलन में हिंसा फूट पड़ी थी. इसमें पीपलखेड़ा पाटोली में 28 लोग मारे गए.
तत्कालीन बीजेपी सरकार ने जस्टिस जसराज चोपड़ा कमेटी का गठन किया. मगर इस कमेटी से भी आरक्षण का मुद्दा हल नहीं हुआ.
वर्ष 2008 में मई का महीना फिर रेल और सड़क मार्गों पर ख़ून बिखेर गया. इस बार भी आंदोलन के दौरान क़रीब तीस लोग हिंसा की भेंट चढ़ गए.
बीजेपी हुकूमत हरकत में आई और गुर्जर समुदाय के लिए पांच प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया. लेकिन यह प्रावधान अदालत की रोक से सिरे नहीं चढ़ा.
इस बीच कांग्रेस सत्ता में आ गई और गुर्जर वर्ष 2010 में फिर सड़कों पर उतर आये. सरकार ने पांच फ़ीसदी आरक्षण तजवीज किया. लेकिन इससे आरक्षण की सीमा पचास से ज़्यादा हो गई.
नतीजन गुर्जर समुदाय और चार अन्य जातियों को एक प्रतिशत आरक्षण पर सब्र करना पड़ा जबकि चार फ़ीसदी आरक्षण पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी.
गुर्जर समुदाय ने अपना अभियान जारी रखा और वर्ष 2015 में वे फिर आंदोलन पर उतर आये. इस बार बीजेपी सत्ता में थी.
बीजेपी सरकार ने एक बार फिर पांच प्रतिशत आरक्षण का दाव आजमाया. पर इससे फिर राजस्थान में आरक्षण अपनी 50 प्रतिशत की स्वीकार्य सीमा से आगे चला गया और हाई कोर्ट ने रोक लगा दी.
तब से गुर्जर समुदाय को एक प्रतिशत आरक्षण का ही लाभ मिल पा रहा है. गुर्जर नेता बैंसला पूछते हैं जब आर्थिक पिछड़े वर्ग के लिए दस फ़ीसदी आरक्षण देने में कोई अड़चन नहीं आई तो उनके आरक्षण में पेचदगी क्यों.
गुर्जर आरक्षणः राजस्थान सरकार सुप्रीम कोर्ट में
इमेज कॉपीरइटPTIक़ानून क्या कहता है?
क़ानून के जानकर कहते हैं सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा पचास फ़ीसदी तय कर रखी है.
वरिष्ठ अधिवक्ता अजय जैन कहते हैं, मौजूदा क़ानूनी स्थिति में आरक्षण में पचास फ़ीसदी की सीमा है. इसके बाद कोई भी प्रावधान क़ानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता है."
जैन कहते हैं, मुझे नहीं लगता कि केंद्र का दस प्रतिशत का आरक्षण का प्रावधान टिक पायेगा. राजस्थान में चार बार यही हुआ है."
गुर्जर नेता हिम्मत सिंह कहते हैं, कुछ सरकारों की बदनीयती और कुछ हमारे नेताओं की राजनीतिक हसरत ने आरक्षण का रास्ता रोक लिया."
उनका आरोप है कि आंदोलन से जुड़े कुछ नेता अपने राजनीतिक मंसूबों के लिए सियासी दलों की फेरी लगाते रहे हैं. इससे आंदोलन अच्छे नतीजे नहीं दे सका.
सिंह के अनुसार राजस्थान ने गुर्जर समुदाय की आबादी 70 लाख है. राज्य में अभी इस समुदाय के आठ विधायक चुने गए हैं.
गुर्जर पहले खुद के लिए अनुसूचित जनजाति वर्ग में आरक्षण मांग रहे थे पर बाद में वे अति पिछड़ा वर्ग में आरक्षण के लिए तैयार हो गए.
पिछले तेरह साल में गुर्जर समुदाय छह बार सड़कों पर उतरा और बड़े बड़े आंदोलन किए. बीजेपी सरकार को चार बार और कांग्रेस सरकार को दो बार गुर्जर आंदोलन का सामना करना पड़ा.
इस आंदोलन में गुर्जर समुदाय ने अपने 72 लोगों का नुकसान देखा है.
पीपल खेड़ा के राजेंद्र कहते हैं, हमारे गांव में बना स्मारक उस दर्द भरे मंजर की याद दिलाता है. वे कहते हैं हमारे गांव के छह लोग इस आंदोलन को भेट चढ़ गए."
गुर्जर आरक्षण समिति से जुड़े रहे हिम्मत सिंह कहते हैं, समाज के ऐसे बहुतेरे लोग हैं जिन्होंने आंदोलन में बहुत कुछ खोया है."
वे अतीत में झांक कर कहते हैं, सिकंदरा में मेरी एक ओद्योगिक इकाई थी, उत्पाद पुरस्कृत होते थे. मगर सब कुछ मिट गया."
बीते एक दशक में गुर्जर आरक्षण की मांग को लेकर कभी राजमार्गों पर चले और कभी रेल पटरियों पर कदमताल की. लेकिन इतना लम्बा चलने के बाद भी उस मुकाम तक नहीं पहुंचे जिसे मंजिल कहते हैं.
शायर कह गए हैं- गैर मुमकिन है कि हालात की गुत्थी सुलझे अहले दानिश ने बहुत सोच के उलझायी है.
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