简体中文
繁體中文
English
Pусский
日本語
ภาษาไทย
Tiếng Việt
Bahasa Indonesia
Español
हिन्दी
Filippiiniläinen
Français
Deutsch
Português
Türkçe
한국어
العربية
एब्स्ट्रैक्ट:Image caption जैकब डॉयमंड आपने आज तक कितना बड़ा हीरा देखा है? किसी को कान में पहने देखा होगा, किसी क
Image caption जैकब डॉयमंड
आपने आज तक कितना बड़ा हीरा देखा है? किसी को कान में पहने देखा होगा, किसी को कान की बालियों में हीरा पहने देखा होगा...ज्यादा से ज्यादा किसी को हीरों के हार पहने देखा होगा...
लेकिन क्या आप जानते हैं पुराने जमाने में हैदराबाद के निज़ाम हीरे का इस्तेमाल 'पेपर वेट' के तौर पर करते थे.
इतना ही नहीं एक निज़ाम तो अंग्रेजों की नज़र से छुपाने के लिए इसे जूतों में पहना करते थे.
यकीन नहीं आता, तो आप खुद भी अपनी नंगी आंखों से देख सकते हैं अब इस हीरे को. इस हीरे का एक नाम भी है - जैकब डॉयमंड
Image caption जैकब डॉयमंड
दिल्ली के राष्ट्रीय संग्राहलय में हैदराबाद के निज़ाम के आभूषणों की प्रदर्शनी लगी है. ये हीरा दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में जारी प्रदर्शनी में रखा है
ये है दुनिया का सातवां सबसे बड़ा हीरा है. ये साइज़ में कोहिनूर से भी बड़ा है
और इस हीरे की आज की कीमत सुन कर शायद आप भी पीछे के 'जीरो' गिनने लग जाएं.
इस हीरे की कीमत है 900 करोड़ रुपए.
फिलहाल इस हीरे का मालिकाना हक़ भारत सरकार के पास है.
'सनी लियोनी' बिहार की परीक्षा में टॉपर!
भारतीय कार्डिनल जो 'यौन शोषण पीड़ितों को न्याय नहीं दिला पाए'
हिंदी के 'नामवर' यानी हिंदी के प्रकाश स्तंभ
इमेज कॉपीरइटNational Museum'जैकब डॉयमंड' की कहानी
लेकिन भारत सरकार को कैसे मिले इस हीरे का मालिकाना हक़ इसकी कहानी भी दिलचस्प है.
हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली खां पाशा ने इसे जैकब नाम के हीरा व्यापारी से खरीदा था. इसलिए इस हीरे का नाम जैकब डॉयमंड पड़ गया.
वैसे इस हीरे को इंपीरियल या ग्रेट वाइट और विक्टोरिया नाम से भी जाना जाता है.
इमेज कॉपीरइटNational Museum
ये हीरा दक्षिण अफ्रीका की किंबर्ली खान में मिला था. तराशने से पहले इस हीरे का वज़न 457.5 कैरट था और उस समय इसे संसार के सबसे बड़े हीरे में से एक माना जाता था.
उसके बाद इस हीरे की चोरी हो गई और इसे पहले लंदन और बाद में हॉलैंड की एक कंपनी को बेच दिया गया. इसे हॉलैंड की महारानी के सामने भी तराशा गया और तब इसका वजन 184.5 कैरट रह गया.
इमेज कॉपीरइटNational Museum
बात 1890 की है. मैल्कम जैकब नाम के हीरा व्यापारी ने हैदराबाद के छठे निज़ाम महबूब अली खां पाशा को इस हीरे का एक नमूना दिखाया और असली हीरे को बेचने के लिए 1 करोड़ 20 लाख की पेशकश रखी. लेकिन निज़ाम केवल 46 लाख ही देने के लिए तैयार हुए. हालांकि इस पर भी सौदा तय हो गया.
आधी रकम लेने के बाद जैकब से इंग्लैंड से हीरा मंगवा भी लिया लेकिन निज़ाम ने बाद में इस हीरे को लेने से मना कर दिया और अपने पैसे वापस मांगा.
दरअसल इसके पीछे की वजह ये एक वजह ये भी बताया जाता है कि ब्रिटिश रेज़ीडेंट इस हीरे को खरीदने के विरोध में थे क्योंकि निज़ाम के ऊपर कर्ज़ा था.
जैकब ने पैसे ना लौटाने के लिए कलकत्ता के उच्च न्यायलय में मुकदमा दायर किया. और 1892 में निज़ाम को ये हीरा मिल ही गया.
इमेज कॉपीरइटNational Museum
जैकब हीरे के अलावा यहां कफ़लिंक, सिरपेच, हार, झुमके, कंगन और अंगूठियां भी हैं.
दिल्ली में ये प्रदर्शनी तीसरी बार लगी है. इससे पहले 2007 में इस हीरे की प्रदर्शनी लगी थी.
अस्वीकरण:
इस लेख में विचार केवल लेखक के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस मंच के लिए निवेश सलाह का गठन नहीं करते हैं। यह प्लेटफ़ॉर्म लेख जानकारी की सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता की गारंटी नहीं देता है, न ही यह लेख जानकारी के उपयोग या निर्भरता के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी है।