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एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटPushpinder Singhस्थान- रक्षा मंत्रालय का कार्यालय. कमरा नंबर 108, साउथ ब्लॉक. दिन 1 सितं
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स्थान- रक्षा मंत्रालय का कार्यालय. कमरा नंबर 108, साउथ ब्लॉक. दिन 1 सितंबर, 1965. समय दोपहर 4 बजे.
रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण, एयर मार्शल अर्जन सिंह और रक्षा मंत्रालय में विशेष सचिव एचसी सरीन, एडजुटेंट जनरल लेफ़्टिनेंट जनरल कुमारमंगलम के साथ गहन मंत्रणा में व्यस्त थे. मुद्दा था छंब सेक्टर में उस दिन सुबह हुआ पाकिस्तानी टैंकों और तोपों का ज़बरदस्त हमला जिसने भारतीय सेना और ख़ुफ़िया एजेंसियों को अचरज में डाल दिया था.
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बैठक शुरू हुए अभी आधा घंटा भी नहीं हुआ था कि थलसेनाध्यक्ष जनरल चौधरी ने कमरे में प्रवेश किया. उन्होंने एयर मार्शल अर्जन सिंह के साथ कुछ देर दबे शब्दों में बात की और रक्षा मंत्री चव्हाण की तरफ़ देख कर कहा कि उन्हें छंब सेक्टर में वायु सेना के इस्तेमाल की अनुमति दी जाए.
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जाने-माने वायुसेना इतिहासकार पुष्पिंदर सिंह बताते हैं, “जब छंब में लड़ाई शुरू हुई 1 सितंबर, 1965 को, पाकिस्तानी सेना काफ़ी आगे आ गई थी और भारतीय सेना काफ़ी ख़तरे में थी, तो रक्षा मंत्री चव्हाण ने अर्जन सिह को बुलाया. उन्होंने उनसे पूछा, 'तुम हमारे लिए क्या कर सकते हो?' अर्जन सिंह ने कहा, 'आप मुझे 'गो अहेड' दीजिए. हम 45 मिनट के अंदर सबसे क़रीबी ठिकाने पठानकोट से अपने विमानों को उड़ा देंगे.' चव्हाण ने तुरंत हाँ कहा.”
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पुष्पिंदर बताते हैं, “अर्जन सिंह ने वहीं से हुक्म दिया, 'गेट एयरबौर्न.' अँधेरा हो रहा था. सब लोग पहले से ही तैयार थे. जैसे ही अर्जन सिंह का आदेश मिला 8 वैंपायर विमानों ने छंब पर बंमबारी करने के लिए उड़ान भरी. इसी को नेतृत्व कहा जाता है.”
阿尔琼·辛格赢得了名字缅甸战役1944年其中授予主蒙巴顿 'Distingbisd飞行十字'。
Pushpinder辛格说,“阿尔扬辛格是 '调试' 1939年,'Cramwell'从。然后第二次世界大战开始了。然后是印度空军的一个中队,排名第一的Squaredon他们的大多数船只都是”休闲“。他们最初的”发布“发生在西北边境省。当日本袭击了缅甸派出印度军队在该地区巨大的数量。”
{10} 他说,“阿尔琼·辛格1号Skwardn是”铅“ 。那时,他的年龄只有25岁。他们被送到了Imphal。当日本入侵开始时,1号Squardon给印度军队提供了15个月的”支持“。他们被称为”英帕尔门将‘和’曼尼普尔邦的老虎,因为Skwardn的1号符号也是‘老虎’。如果他们在战场上只有“Distingbis飞行十字勋章”。“ {说10} pushpinder,”这是空军一个伟大的荣誉。路易斯蒙巴顿勋爵是南亚司令部的最高指挥官。他自己走到前面,把这个荣誉归给了Arjan Singh。这使他们很多启示。
这主蒙巴顿已经到来到主动奖章
1965:道路开始因为战斗
飞机的 图片版权Pushpinder辛格阿尔扬辛格紧急降落
之前阿尔扬辛格在像Vjhirstan的米兰沙赫偏远地区被张贴西北Simaat省。Sitnhr 1940他们在下个月和那里填补了50个航班0在这些操作中很多时候是从对他们的地面发射,但都没有打破他们的斗志。 空气Venugopal Jasjit辛格元帅阿尔琼·辛格的传记“图标”在一则有趣的轶事中,“当Arjun Singh第三次睡觉时,他意识到他的引擎上没有子弹。那时飞机很低。那么莫名其妙Klabajiya饲料,他承担了近Kasora河他们的飞行干燥的地方。” {} 18 他写道,“阿尔琼·辛格的紧急降落的飞机在脸上他击中了仪表板,脸上受了重伤。但Arjun Singh当时的担忧是别的。一旦飞机”撞地“,他们的”guanar“Ghulam Ali el开始跑了。阿尔琼·辛格被看到萨尔运行朝着阿里小山一样跑了,埋伏在那里的人从谁已经发射了部落。” {18} {19} 1965年战争50年:22天
图片版权Pushpinder辛格枪手束缚采集跑后面阿里
{777 }空气准将Jasjeet Singh进一步写道:“没有一次笑声,没有收入损失,血液就会流出鼻子。然而,他们很快就在他后面跑,并提前从四面八方的子弹的冲击之间的比赛50码抓住了他,并要求运行相反的方向,在机上有”崩溃的土地“。我们自己的军队也在看这个引人注目的事件。他抨击Khbaelion以节省 ” {777} {} 24 1965年战争:阿尤布的错误 {24} 1971年:为什么巴基斯坦军队投降?
图片版权DHIRENDRA小号JAFA四十岁时航空
{28} 太低空气在世界上谁在短短的40年后召开的年龄只有在45岁才“退休” Pushpinder Singh解释说,“当Arjan Singh在1964年成为空军参谋长时,他还很年轻。在1962年中国失去战斗后,印度空军正计划扩建和现代化。那时印度将只有20个中队。他的大部分飞机,如Mississiers,Canberra Hunts和Tofians,都很老了。他们还有一些米格-21。米格21印度之前来到时,阿尔扬辛格成为空气首席。” {29} 图像热汗Fjhl与字幕Pushpinder辛格
Pushpinder辛格说,“如果三周后并没有停止存在,可以毫无疑问,印度,巴基斯坦空军会毁了原因在于印度拥有的战争飞机数量超过巴基斯坦,而巴基斯坦则拥有”备件“的巨额赤字。但由于火印度和巴基斯坦之间的战争已经结束了看作是一种 '抽奖'。 ”
{} 33 在塔什干? {33} 图片版权Pushpinder SinghImage标题国防部长Yashwantrao恰范发生了什么与空军中将阿尔扬辛格拥有数字惊人阿尔扬辛格
空气首席是元帅阿尔扬辛格,他的磁性个性,高宽体,谦让的特殊性,精彩好礼,真棒的领导是已知的。
{} 37 在阿尔琼·辛格接近失踪少将卡皮尔·卡克谁知道“大都是阿尔琼·辛格身高。他的马鞍也很合适。他们也非常喜欢玩。在社交上非常友好。一个普通的空军并不认为他正在与酋长谈话。第二件事是他们曾经是一个很”冷静“的人。他脑子里没有任何热情。” {37} 他说,“让我在1965年9月1日向你说明一下。我驻扎在帕坦科特空军基地。他正在与国防部长会面。然后根乔杜里拜访他非常草率,并表示,如果空军不来我们的帮助克什米尔从我们的手中。我见证了这一点。”
卡皮尔·卡克回忆,“我运行它在他们帕坦科特已经命令存在时阿尔扬Singh和在只有29分8吸血鬼这架飞机已”起飞“向巴基斯坦目标投掷炸弹。能够立即做出决定。那些从来没有说我这样做是会重新考虑。 ”
{} 40 在受伤的孩子左山口Tarapore的 {40} 1965年:一般谁下令不考虑陆军
imħ版权Pushpinder SinghImage字幕非常副手
阿尔扬辛格Wayusenadikarion总是Jr.和在照片与首相拉尔巴哈杜尔夏斯特里空警阿尔扬辛格基层人员飞行员在1965年'榜样是。
{} 45 说,空军元帅萨蒂什Inamdar,“她的交互使用非常坦率地说,之前没有看到它曾经强迫如此高级官员六月从IERS讲这么轻便。他只穿着他的制服,”Distingbisd飞行十字勋章。此外,我没有得到他的任何穿着制服的奖牌。 {45} 图片版权Pushpinder辛格空军元帅Asghr汗的电话
1965年战争三样题为印刷电视Parasurama印度快报的时候,一个电话阻止战争的完成报告。
{} 48 本报英国报纸星期日时报援引写道:“巴基斯坦空军的空军元帅Asghr汗在他的老朋友阿尔琼·辛格曾经有一个保密的电话引起去尽快住,两国之间的战斗。 {48} {} 49 Pushpinder辛格回忆说,”Kligs'无论是在英帕尔。当阿尔琼·辛格有1号为铅Skwardn,Asghr汗9号Skwardn灌了铅。盈利为“高级”他们了几年,但两人互相认识。Asghr但巴基斯坦的新空军之父什么时候叫它是这样开始卡奇战斗Asghr汗在电话中说阿尔琼·辛格我们应该从这场战斗空军带走。“ {49} {50} 他说,”当如果小冲突开始,那么危险就是这些小冲突不会采取严重的形式。在Asghar的电话之后,印度也决定他不会在这场战斗中使用他的空军。它被传言Asghr汗移除,以便在战争开始之前,之后,他们曾向巴基斯坦领先的IAF没有信息的政府。其实里头没有道理,因为它是过期五年Asghr汗的长期和他们被认为是“连”反正退休了。{6}
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वो इस पद पर बैठने वाले पहले और आख़िरी वायु सैनिक थे.माउंटबेटन ने दिया था अर्जन सिंह को डीएफ़सी
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अर्जन सिंह ने सबसे अधिक नाम कमाया 1944 की बर्मा की लड़ाई में जहाँ उन्हें लार्ड माउंटबेटन ने 'डिसटिंग्विश्ड फ़्लाइंग क्रॉस' से सम्मानित किया.
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पुष्पिंदर सिंह बताते हैं, “अर्जन सिंह की 'कमिशनिंग' हुई थी 1939 में 'क्रैमवेल' से. तब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका था. तब भारतीय वायु सेना का एक ही स्कवार्डन था नंबर 1 स्कवार्डन. उनके ज़्यादातर जहाज़ थे 'लाईज़ेंडर.' उनकी शुरुआती 'पोस्टिंग' हुई थी उत्तर पश्चिम सीमाँत प्रांत में. जब जापान ने बर्मा पर हमला किया तो उस इलाके में भारी मात्रा में भारतीय सैनिक भेजे गए.”
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वो कहते हैं, “अर्जन सिंह नंबर 1 स्कवार्डन को 'लीड' कर रहे थे. उस समय उनकी उम्र थी मात्र 25 साल. उन्हें इंफाल भेजा गया. जब जापानी हमला शुरू हुआ तो नंबर 1 स्कवार्डन ने भारतीय सेना को 15 महीनों तक बहुत 'सपोर्ट' दिया. उन को 'इंफाल का रक्षक' और 'टाइगर्स ऑफ़ इंफाल' भी कहा गया, क्योंकि नंबर 1 स्कवार्डन का प्रतीक चिन्ह भी 'टाइगर' ही था. उनको युद्ध स्थल में ही 'डिस्टिंग्विश फ़्लाइंग क्रॉस' मिला.”
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पुष्पिंदर कहते हैं, “ये वायु सेना का बहुत बड़ा सम्मान होता है. लार्ड लुई माउंटबेटन दक्षिण एशिया कमान के सर्वोच्च सेनापति थे. वो खुद फ़्रंट पर गए थे अर्जन सिंह को ये सम्मान देने. इससे उनको बहुत प्रेरणा मिली.”
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जिन्हें लॉर्ड माउंटबेटन खुद चलकर मेडल देने आए थे
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1965: एक सड़क की वजह से शुरू हुई थी लड़ाई
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इमेज कॉपीरइटPushpinder Singhअर्जन सिंह के विमान की क्रैश-लैंडिंग
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इससे पहले अर्जन सिंह उत्तर पश्चिम सीमाँत प्रांत में वज़ीरस्तान के मीरनशाह जैसे सुदूर इलाके में तैनात थे. सितंहर 1940 में उन्होंने वहाँ से 50 उड़ानें भरीं और अगले महीने 80. इन अभियानों के दौरान कई बार उन पर ज़मीन से गोलीबारी हुई, लेकिन इन सबने उनके जुझारूपन को तोड़ा नहीं.
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एयर कॉमोडोर जसजीत सिंह मार्शल अर्जन सिंह की जीवनी 'द आइकन' में एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं, “जब अर्जन सिंह तीसरा ग़ोता लगा रहे थे, तब उन्हें महसूस हुआ कि उनके इंजन पर कोई गोली लगी है. उस समय विमान काफ़ी नीचाई पर था. ख़ैर किसी तरह कलाबाज़ियाँ खिलाते हुए उन्होंने अपने विमान को खैसोरा नदी के पास एक सूखी जगह पर उतार लिया.”
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वो लिखते हैं, “क्रैश-लैंडिंग के दौरान अर्जन सिंह का चेहरा विमान के 'इंस्ट्रुमेंट पैनल' से टकराया और उनके चेहरे पर गहरी चोट आई. लेकिन उस समय अर्जन सिंह की चिंता कुछ और ही थी. जैसे ही विमान ने 'क्रैश-लैंड' किया, उनका 'गनर' ग़ुलाम अली उतर कर दौड़ने लगा. अर्जन सिंह ने देखा कि ग़ुलाम अली उसी पहाड़ी की तरफ़ दौड़ा चला जा रहा है, जहाँ से घात लगा कर क़बीले के लोग पहले से ही गोलीबारी कर रहे थे.”
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1965 युद्ध: न भारत जीता, न पाकिस्तान हारा
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1965 युद्ध के 50 साल: वो 22 दिन
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इमेज कॉपीरइटPushpinder Singhगनर ग़ुलाम अली के पीछे भागे अर्जन
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एयर कॉमोडोर जसजीत सिंह आगे लिखते हैं, “एक भी लम्हा गंवाए बिना अर्जन सिंह नाक से बहते ख़ून के बावजूद तेज़ी से उसके पीछे भागने लगे और चारों तरफ़ से चल रही गोलियों के बीच 50 गज़ आगे दौड़ कर उसे पकड़ लिया और उसे उल्टी दिशा में भागने के लिए कहा, जहाँ विमान ने 'क्रैश-लैंड' किया था. हमारी अपनी सेनाएं भी इस नाटकीय घटनाक्रम को देख रही थीं. उन्होंने दोनों को बचाने के लिए क़बाएलियों पर हमला बोल दिया.”
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1965 युद्ध: अयूब की ग़लती पर शास्त्री भारी
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1971: पाकिस्तानी सेना को क्यों करना पड़ा सरेंडर?
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इमेज कॉपीरइटDHIRENDRA S JAFAचालीस साल की उम्र में वायुसेनाध्यक्ष
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दुनिया में बहुत कम वायुसेनाध्यक्ष होंगे जिन्होंने मात्र 40 साल की उम्र में ये पद संभाला हो और सिर्फ़ 45 साल की उम्र में 'रिटायर' हो गए हों.
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पुष्पिंदर सिंह बताते हैं, “जब अर्जन सिंह 1964 में वायुसेनाध्यक्ष बने तो वो बहुत युवा थे. 1962 में चीन से लड़ाई हारने के बाद भारतीय वायुसेना विस्तार और आधुनिकीकरण की योजना बना रही थी. उस समय भारत के पास मुश्किल से 20 स्कवार्डन रहे होंगे. उनके भी अधिकतर विमान जैसे मिसटियर्स, कैनबरा हंटर्स और तूफ़ानीज़ पुराने पड़ चुके थे. उनके पास थोड़े से मिग 21 भी थे. भारत के पहले मिग 21 तब आए जब अर्जन सिंह एयर चीफ़ बन रहे थे.”
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Image caption पुष्पिंदर सिंह के साथ रेहान फ़ज़ल
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वो कहते हैं, “हमारी दीर्घकालिक योजना थी कि हम थोड़े से मिग 21 रूस से ख़रीदेंगे और बाकी हिंदुस्तान एयरनॉटिक्स के कारख़ाने में बनाएंगे. शुरू में पाकिस्तान के साथ हवाई लड़ाई अच्छी नहीं गई. हमारे कुछ जहाज़ गिर गए और कुछ ज़मीन पर ही बरबाद हो गए. उन्होंने रक्षा मंत्री चव्हाण से कहा कि आप हमें 'ऑपरेट' करने की आज़ादी दीजिए. चव्हाण ने उनकी ये बात मान ली.”
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पुष्पिंदर सिंह कहते हैं, “अगर तीन हफ़्तों के बाद युद्ध विराम नहीं हुआ होता तो इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत ने पाकिस्तान की वायु सेना को नेस्तानुबूद कर दिया होता. इसकी वजह ये थी कि भारत के पास पाकिस्तान से कहीं अधिक युद्धक विमान थे और पाकिस्तान के पास 'स्पेयर्स' की भारी कमी पड़ रही थी. लेकिन युद्ध विराम होने की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध एक तरह से 'ड्रा ' के रूप में समाप्त हुआ था.”
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क्या हुआ था ताशकंद में?
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इमेज कॉपीरइटPushpinder SinghImage caption रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण के साथ एयर मार्शल अर्जन सिंह ग़ज़ब की शख़्सियत के मालिक थे अर्जन सिंह
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एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह की ख़ासियत थी उनका चुंबकीय व्यक्तित्व, लंबा चौड़ा शरीर, विनम्रता, बात करने का अद्भुत सलीका और ग़ज़ब की नेतृत्व क्षमता.
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अर्जन सिंह को नज़दीक से जानने वाले एयर वाइस मार्शल कपिल काक याद करते हैं, “बड़े लंबे क़द के थे अर्जन सिंह. उनकी काठी भी काफ़ी तंदुरुस्त थी. खेलने के भी वो बहुत शौकीन थे. सामाजिक रूप से बहुत मिलनसार थे. एक आम वायु सैनिक को ये नहीं लगता था कि वो चीफ़ से बात कर रहा है. दूसरी बात ये थी कि वो बड़े 'कूल - हेडेड' रहते थे. उनके मस्तिष्क में किसी तरह की गर्मी नहीं रहती थी.”
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वो कहते हैं, “मैं आपको मिसाल देता हूँ 1 सितंबर 1965 की. मैं पठानकोट एयर बेस पर तैनात था. वो रक्षा मंत्री के साथ एक मीटिंग कर रहे थे. तभी थलसेनाध्यक्ष जनरल चौधरी बहुत हड़बड़ाहट में उनसे मिलने आए और बोले कि अगर वायु सेना हमारी मदद में नहीं आई तो कश्मीर हमारे हाथ से निकल जाएगा. मैं इस बात का गवाह हूँ.”
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कपिल काक याद करते हैं, “मैं पठानकोट के उस रन वे पर मौजूद था जब अर्जन सिंह का हुक्म आया और सिर्फ़ 29 मिनटों में 8 वैंपायर विमानों ने पाकिस्तानी ठिकानों पर बम गिराने के लिए 'टेक ऑफ़' किया था. ये थी उनकी तुरंत फ़ैसला लेने की क्षमता. वो ये कभी नहीं कहते थे कि मैं सोचूंगा और फिर ये करूंगा.”
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घायल हुए पर मैदान नहीं छोड़ा कर्नल तारापोर ने
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1965: जनरल जिसने नहीं माना सेनाध्यक्ष का आदेश
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इमेज कॉपीरइटPushpinder SinghImage caption 1965 की इस तस्वीर में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ एयर मार्शल अर्जन सिंह जूनियर अफ़सरों को साथ बहुत बेतकल्लुफ़
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अर्जन सिंह हमेशा से ही जूनियर वायुसेनाधिकारियों और वायु सैनिकों के 'रोल मॉडल' रहे हैं.
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एयर मार्शल सतीश ईनामदार बताते हैं, “वो बातचीत बहुत बेबाकी से करते थे. इससे पहले वायुसेना में ये कभी नहीं देखा गया था कि इतना सीनियर अफ़सर अपने जूनियर्स से इतनी बेतकल्लुफ़ी से बात करे. वो अपनी पूरी वर्दी पर सिर्फ़ एक ही मैडल लगाते थे, 'डिसटिंग्विश्ड फ़्लाइंग क्रॉस.' इसके अलावा मैंने उनकी वर्दी पर कोई पदक लगे नहीं देखा.”
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इमेज कॉपीरइटPushpinder Singhएयर मार्शल असग़र खाँ का फ़ोन
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1965 के युद्ध से तीन पहले इंडियन एक्सप्रेस में टी वी परसुराम की एक रिपोर्ट छपी थी जिसका शीर्षक था, 'जब एक फ़ोन कॉल ने पूरा युद्ध होने से रोका.'
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अख़बार ने ब्रिटिश अख़बार 'संडे टाइम्स' का उल्लेख करते हुए लिखा था कि पाकिस्तानी वायु सेना के एयर मार्शल असग़र ख़ाँ ने अपने पुराने दोस्त अर्जन सिंह को एक गोपनीय टेलिफ़ोन कॉल किया जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच लड़ाई होते होते रह गई.
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पुष्पिंदर सिंह याद करते हैं, “दोनों इम्फाल में 'कलीग्स' थे. जब अर्जन सिंह वहाँ नंबर 1 स्कवार्डन लीड कर रहे थे, असग़र ख़ाँ नंबर 9 स्कवार्डन लीड कर रहे थे. अर्जन उनसे कुछ साल 'सीनियर' थे, लेकिन दोनों एक दूसरे को जानते थे. असग़र को अभी तक पाकिस्तान की नई वायु सेना का पिता कहा जाता है. जब रण ऑफ़ कच्छ की लड़ाई शुरू हुई तो असग़र ख़ाँ ने अर्जन सिंह को फ़ोन कर कहा कि हमें अपनी वायु सेना को इस लड़ाई से दूर रखना चाहिए.”
{49}{50}
वो कहते हैं, “जब शुरू में झड़पें शुरू हुई तो ख़तरा था कि ये झड़पें कहीं गंभीर रूप न धारण कर लें. असग़र ख़ाँ के फ़ोन के बाद भारत ने भी तय किया कि वो इस लड़ाई में अपनी वायु सेना का इस्तेमाल नहीं करेगा. उस के बाद ये अफवाह फैली कि असग़र ख़ाँ को युद्ध शुरू होने से पहले इसलिए निकाला गया, क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान की सरकार को जानकारी दिए बग़ैर भारतीय वायुसेना के प्रमुख से संपर्क किया था. वास्तव में इस बात में कोई सच्चाई नहीं थी, क्योंकि असग़र खाँ का पाँच सालों का कार्यकाल समाप्त हो चुका था और वो वैसे भी 'रिटायर' होने वाले थे.”
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1965: जब हंटर्स ने पाकिस्तानी ट्रेन को उड़ाया..
इमेज कॉपीरइटPushpinder SinghImage caption राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन एयर मार्शल अर्जन सिंह को पद्म विभूषण प्रदान करते हुए ठंडे दिमाग़ वाले अर्जन सिंह
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लेकिन जब अंतत लड़ाई हुई तो अर्जन सिंह ने पूरी दुनिया को दिखाया कि वास्तव में नेतृत्व क्षमता होती क्या है. कपिल काक बताते हैं, “उस वक्त सिद्ध हुआ उनके नेतृत्व में कि कोई लड़ाई तब तक नहीं लड़ी जा सकती, जब तक वायु सेना उसमें भाग नहीं लेती है. इस लड़ाई में कई बार भारतीय वायु सेना को झटके लगे. पठानकोट में हमारे कई विमानों का नुकसान हुआ.”
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काक कहते हैं, “कलाईकुंडा में भी हमारे कुछ जहाज़ बर्बाद हुए. लेकिन इन्होंने ठंडे दिमाग़ से उसका सामना किया. जहाँ इन्हें कठोर कार्रवाई करनी थी, वो उन्होंने की और कुछ कमांडरों को हटाया भी. उन्होंने लड़ाई से हर क़दम पर सबक सीखा और ये सुनिश्चित किया कि ऐसी ग़लतियाँ दोबारा न हों.”
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पाकिस्तान फ़्लाइंग अकादमी में अर्जन सिंह का चित्र
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जब भारतीय पायलट्स ने हलवारा में पाकिस्तान के दो सेबर जेट्स गिरा दिए तो वो खुद अपना विमान उड़ा कर उन्हें शाबाशी देने वहाँ पहुंचे. आज़ादी के समय अर्जन सिंह रिसालपुर के स्टेशन चीफ़ थे, जो इस समय पाकिस्तान में है.
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पुष्पिंदर सिंह बताते हैं, “मैंने पाकिस्तान की वायु सेना पर काफी शोध किया है और उस पर एक किताब भी लिखी है 'फ़िज़ाया.' एक बार मैं पाकिस्तानी वायु सैनिकों का इंटरव्यू करने के लिए पाकिस्तान जा रहा था तो वहाँ से सुझाव आया कि मैं रिसाल पुर क्यों नहीं जाता. रिसाल पुर इस समय फ़्लाइंग स्टेशन नहीं है बल्कि 'फ़्लाइंग अकादमी' है जहाँ पाकिस्तानी पायलेटों को ट्रेनिंग दी जाती है.”
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वो कहते हैं, “मैंने पाकिस्तान जाने से पहले अर्जन सिंह से पूछा कि क्या मैं उन्हें आपकी एक तस्वीर भेंट में दे सकता हूँ. मैंने ही उनकी तस्वीर खींची और उसे उन्होंने 'साइन' किया. उसे मैंने रिसालपुर के स्टेशन कमांडर को भेंट किया. एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह की वो तस्वीर आज भी पाकिस्तान की रिसालपुर फ़्लाइंग अकादमी में लगी हुई है.”
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इमेज कॉपीरइटPUSHPINDAR SINGHImage caption हलवारा एयर बेस पर अदम्य साहस दिखाने वाले विनोद नायब, अर्जन सिंह और बाएं खड़े हैं राठौर
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कमीशंड अफ़सर केकार का दरवाज़ा खोलने के ख़िलाफ़
एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह जब रिटायर हुए तो उन्होंने हर वायु स्टेशन पर 'फ़ेयरवेल विज़िट' की. वो अंबाला भी गए जहाँ उस समय एयर मार्शल सतीश इनामदार फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट के तौर पर तैनात थे.
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सतीश ईनामदार याद करते हैं, “मुझे एयर मार्शल अर्जन सिंह का 'लियाजाँ ऑफ़िसर' बनाया गया. वो अंबाला में 'चिनार ब्लॉक' में ठहरे हुए थे. हम पहले दिन उनको गाड़ी में लेने गए तो मैं लपक कर पीछे की सीट का दरवाज़ा खोलने चला. उन्होंने मुझसे कहा, 'रुको.... वेट.' मैंने कहा, 'मैं आपको स्टेशन कमांडर के आफ़िस ले चलने आया हूँ.' उन्होंने कहा 'ये ठीक है, लेकिन भारतीय वायु सेना का एक 'कमींशंड' अफ़सर मेरी कार का दरवाज़ा नहीं खोलेगा.' मैं थोड़ा सकपकाया. इतने में एयरफ़ोर्स के 'कॉरपोरल सार्जेन्ट' ने उनकी कार का दरवाज़ा खोल दिया.”
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वो कहते हैं, “मैं दूसरी तरफ़ से जा कर गाड़ी की अगली सीट पर बैठने लगा. उन्होंने फिर मुझसे कहा, 'कम एट द बैक.' मैं बहुत शर्माते हुए उनकी बग़ल में बैठ गया. उन्होंने मेरा नाम पूछा और कहा, 'एक बात हमेशा याद रखना. कभी भी तुम कितने ही बड़े अफ़सर को 'एस्कॉर्ट' कर रहे हो, चाहे तुम जितने भी छोटे अफ़सर हो, कभी भी उसकी आगे की सीट पर नहीं बैठना. हमेशा उसके बग़ल में बैठ कर जाना.”
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ईनामदार कहते हैं, “जब हम स्टेशन कमांडर के घर पर उतरे तो उन्होंने मुझे एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह के साथ पीछे की सीट से उतरते देखा. आश्चर्य से उनका मुंह खुला का खुला रह गया. मैं उनको कैसे बताता कि मुझे पीछे की सीट पर बैठने की दावत खुद एयर चीफ़ मार्शल ने दी थी!”
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इमेज कॉपीरइटPUSHPENDRA SINGHImage caption 1965 के युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के प्रमुख अर्जन सिंह और पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख नूर ख़ान मार्शल ऑफ़ द इंडियन एयरफ़ोर्स
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वर्ष 2002 में भारत सरकार ने एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह को 'मार्शल ऑफ़ द एयरफ़ोर्स' नियुक्त किया. मार्शल का वही स्थान होता है जो थल सेना में 'फ़ील्ड मार्शल' का होता है. मैंने जब एयर वाइस मार्शल कपिल काक से पूछा कि जब आपको ये ख़बर मिली तो आपको कैसा महसूस हुआ, तो उनका जवाब था, 'देर आयद, दुरुस्त आयद, क्योंकि पहले ही बहुत देर हो चुकी थी.
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कपिल काक कहते हैं, “उससे पहले करियप्पा और सैम मानेकशॉ को 'फ़ील्ड मार्शल' बनाया गया था. अगर आप एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह का करियर रिकार्ड देखें, तो वो किसी से कम नहीं था. वो अपने काम से अपनी क़ाबलियत 'डिमॉन्सट्रेट' करते थे.”
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काक कहते हैं, “वो आला दर्जे के लड़ाकू पायलेट थे. वो पहले काम कर के खुद दिखाते थे और फिर लोगों से कहते थे कि अब तुम इसको करो. शायद यही वजह थी कि वो भारतीय वायु सेना में काफ़ी लोकप्रिय रहे.”
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इमेज कॉपीरइटPIBगोल्फ़ के लिए जुनून
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एयर चीफ़ मार्शल अर्जन सिंह को रिटायरमेंट के बाद पहले स्विटज़रलैंड में भारत का राजदूत बनाया गया और फिर कीनिया में उच्चायुक्त. वो अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य और दिल्ली के लेफ़िटिनेंट गवर्नर भी रहे. हवाई जहाज़ों के अलावा उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा जुनून था गोल्फ़.
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वो अपने जीवन के अंतिम दिनों तक गोल्फ़ खेलते रहे. आख़िरी दिनों में जब वो चल नहीं पाते थे, तब भी उनकी पाँच स्टार वाली गाड़ी दिल्ली गोल्फ़ कोर्स के अंतिम छोर तक जाती थी और वो अपनी 'व्हील चेयर' पर बैठ कर लोगों को गोल्फ़ खेलते हुए देखा करते थे.
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