简体中文
繁體中文
English
Pусский
日本語
ภาษาไทย
Tiếng Việt
Bahasa Indonesia
Español
हिन्दी
Filippiiniläinen
Français
Deutsch
Português
Türkçe
한국어
العربية
एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesअमरीका ने ईरान से भारत को तेल ख़रीदने पर प्रतिबंधों में छूट दे रखी थी. ईरान
इमेज कॉपीरइटGetty Images
अमरीका ने ईरान से भारत को तेल ख़रीदने पर प्रतिबंधों में छूट दे रखी थी. ईरान पर अमरीका ने प्रतिबंधों को और कड़ा किया तो एक मई को यह छूट ख़त्म कर दी.
इस संकट के बीच ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद ज़रीफ़ सोमवार की देर रात नई दिल्ली पहुंचे हैं. ज़रीफ़ भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाक़ात करेंगे.
भारत को ईरान से तेल ख़रीदने पर मिली अमरीकी छूट ख़त्म होने का मतलब यह हुआ कि भारत चाहकर भी ईरान से तेल नहीं ख़रीद सकता है.
अगर भारत अमरीका के ख़िलाफ़ जाकर ईरान से तेल ख़रीदता है तो भारत पर अमरीका कई तरह का प्रतिबंध लगा सकता है. ज़रीफ़ और सुषमा स्वराज की मुलाक़ात में अमरीकी प्रतिबंधों से निपटने पर बातचीत हो सकती है.
दोनों नेताओं के बीच चाबाहार पोर्ट पर भी बात होगी क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस मामले में छूट कायम रखी है.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
2019 में ज़रीफ़ का यह दूसरा भारत दौरा है. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अभी अमरीका के ख़िलाफ़ नहीं जा सकता है. हाल ही में अमरीका ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अज़हर को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने में खुलकर मदद की थी.
ईरानी तेल का भारत, चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा ख़रीदार है. अमरीकी प्रतिबंधों के बाद भारत ने इसमें कटौती कर दी थी और हर महीने 1.25 मिलियन टन की सीमा तय कर दी थी. 2017-18 में भारत ईरान से प्रतिवर्ष 22.6 मिलियन टन तेल ख़रीद रहा था.
मध्य-पूर्व में अमरीकी सैनिकों की भारी तैनाती
पिछले गुरुवार को अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की शीर्ष के अधिकारियों के साथ बैठक हुई थी. कार्यकारी रक्षा मंत्री पैट्रिक शैनहन ने मध्य-पूर्व में अमरीकी सेना की योजना को पेश किया था. मध्य-पूर्व में अमरीका बड़ी संख्या में सैनिक भेजने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका मध्य-पूर्व में एक लाख 20 हज़ार सैनिक भेजने पर विचार कर रहा है और यह संख्या 2003 में अमरीका ने जब इराक़ पर हमला किया था, उसी के बराबर है.
क्या ट्रंप ईरान में सत्ता परिवर्तन करना चाहते हैं? इस पर ट्रंप का कहना है, ''हमलोग देख रहे हैं कि ईरान के साथ क्या होता है. अगर वो कुछ करते हैं तो उनकी यह बड़ी भूल होगी.''
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesभारत की ऊर्जा ज़रूरतें और शिया कनेक्शन
भारत और ईरान के बीच दोस्ती के मुख्य रूप से दो आधार बताए जाते हैं. एक भारत की ऊर्जा ज़रूरतें हैं और दूसरा ईरान के बाद दुनिया में सबसे ज़्यादा शिया मुसलमानों का भारत में होना.
ईरान को लगता था कि भारत सद्दाम हुसैन के इराक़ के ज़्यादा क़रीब है क्योंकि अब तक भारत सबसे ज़्यादा तेल आयात इराक़ से करता आया है. गल्फ़ को-ऑपरेशन काउंसिल से आर्थिक संबंध और भारतीय कामगारों के साथ प्रबंधन के क्षेत्र से जुड़ी प्रतिभाओं के कारण अरब देशों से भारत के मज़बूत संबंध कायम हुए हैं.
भारत की ज़रूरतों के हिसाब से ईरान से तेल आपूर्ति कभी उत्साहजनक नहीं रही. इसके मुख्य कारण इस्लामिक क्रांति और इराक़-ईरान युद्ध रहे.
प्लेबैक आपके उपकरण पर नहीं हो पा रहा
ईरान की इस्लामी क्रांति के 40 साल
भारत भी ईरान से दोस्ती को मुक़ाम तक ले जाने में लंबे समय से हिचकता रहा है. 1991 में शीतयुद्ध ख़त्म होने के बाद सोवियत संघ का पतन हुआ तो दुनिया ने नई करवट ली. भारत के अमरीका से संबंध स्थापित हुए तो उसने भारत को ईरान के क़रीब आने से हमेशा रोका.
इराक़ के साथ युद्ध के बाद से ईरान अपनी सेना को मज़बूत करने में लग गया था. उसी के बाद से ईरान की चाहत परमाणु बम बनाने की रही है और उसने परमाणु कार्यक्रम शुरू भी कर दिया था.
अमरीका किसी सूरत में नहीं चाहता था कि ईरान परमाणु शक्ति संपन्न बने और मध्य-पूर्व में उसका दबदबा बढ़े. ऐसे में अमरीका ने इस बात के लिए ज़ोर लगाया कि ईरान के बाक़ी दुनिया से संबंध सामान्य न होने पाएं.
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesभारत-इसराइल मित्र तो ईरान कहां?
इसराइल और ईरान की दुश्मनी भी किसी से छिपी नहीं है. ईरान में 1979 की क्रांति के बाद इसराइल से दुश्मनी और बढ़ी. इतने सालों बाद भी इसराइल और ईरान की दुश्मनी कम नहीं हुई है बल्कि और बढ़ी ही है.
दूसरी तरफ़ इसराइल और भारत क़रीब आते गए. भारत हार्डवेयर और सैन्य तकनीक के मामले में इसराइल पर निर्भर है. ऐसे में ईरान के साथ भारत के रिश्ते उस स्तर तक सामान्य नहीं हो पाए. 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान गए थे. मोदी के दौरे को चाबाहार पोर्ट से जोड़ा गया. भारत के लिए यह पोर्ट चीन और पाकिस्तान की बढ़ती दोस्ती की काट के रूप में देखा जा रहा है.
प्लेबैक आपके उपकरण पर नहीं हो पा रहा
इसराइल-ईरान में क्यों है दुश्मनीसंकट की स्थिति में ईरान की उम्मीद चीन और भारत
संकट की घड़ी में ईरान चीन और भारत की तरफ़ देखता है लेकिन इस बार सब कुछ बहुत आसान नहीं है. चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप प्रशासन ने पहले से ही ट्रेड वॉर छेड़ रखा है. ईरान में लगातार बदतर स्थिति होती जा रही है. ईरान की मुद्रा रियाल इतिहास के सबसे निचले स्तर पर आ गई है. अनाधिकारिक बाज़ार में तो एक डॉलर के बदले एक लाख से ज़्यादा रियाल देने पड़ रहे हैं.
इस साल की शुरुआत में रियाल की क़ीमत डॉलर की तुलना में मौजूदा वक़्त से आधी से भी कम थी.
इमेज कॉपीरइटGetty Images
जुलाई में ईरान में 2012 के बाद पहली बार बड़ी संख्या में लोग सरकार के ख़िलाफ़ तेहरान की सड़कों पर उतरे थे. ईरान के पक्ष में कुछ भी सकारात्मक होता नहीं दिख रहा है. अमरीका ने सऊदी अरब को तेल का उत्पादन बढ़ान को लिए कहा है और सऊदी तैयार भी हो गया है. ईरान के पास विदेशी मुद्रा हासिल करने का कोई ज़रिया नहीं रहेगा क्योंकि वो तेल का भी निर्यात नहीं करने की स्थिति में होगा.
अमरीका दुनिया के तमाम तेल आयातक देशों पर ईरान से तेल नहीं ख़रीदने का दबाव बना रहा है. इन देशों में भारत भी शामिल है.
ऐसे में सवाल उठता है कि ईरान से सबसे ज़्यादा तेल आयात करने वाला देश चीन संकट की घड़ी में क्या उसका साथ देगा? इस सवाल पर अमरीका में भी ख़ूब बहस हो रही है.
ईरान पर अमरीका के नए प्रतिबंधों की वजह से चीन के निजी सेक्टर प्रभावित नहीं होंगे और ऐसा ही यूरोप के साथ होगा. दूसरी तरफ़ ईरान के पास सीमित विकल्प हैं.
इसमें कोई शक नहीं है कि ईरान को केवल चीनी निवेश, निर्यात और तेल की ख़रीदारी से ही मदद मिल सकती है.
इमेज कॉपीरइटGetty Imagesयूरोप का भी साथ नहीं
अमरीका ने जब परमाणु समझौते को ख़त्म किया तो ईरान ने यूरोप की तरफ़ रुख़ किया. ईरान ने कोशिश की कि यह परमाणु समझौता ख़त्म नहीं हो और इसी के तहत यूरोपीय यूनियन के अधिकारियों ने अपनी कंपनियों को प्रोत्साहित किया कि वो ईरान के साथ व्यापार और निवेश जारी रखें.
यूरोप की सरकारों ने ईरान के साथ कई छूटों का प्रस्ताव रखा और अमरीका से भी कहा कि उनकी कंपनियों को ईरान के साथ व्यापार करने दे.
अब यूरोप की कंपनियां भी नहीं सुन रही हैं. निवेश के मोर्चे पर पीएसए समूह ने ईरानी ऑटो मैन्युफ़ैक्चरर्स के साथ एक साझे उपक्रम को बंद करने का फ़ैसला किया.
इराक़ बन जाएगा ईरान?
ईरान के पहले उपराष्ट्रपति को सुधारवादी माना नेता माना जाता है. उन्होंने कहा था कि ईरान को सीधे अमरीका से बात करनी चाहिए. इशाक़ ने कहा है कि ईरान गंभीर 'इकनॉमिक वॉर' में जा रहा है और इसका नतीज़ा बहुत बुरा होगा.
उन्होंने कहा था कि ईरान को इस संकट से चीन और रूस भी नहीं निकाल सकते हैं. उनका कहना है कि अमरीका ही इस संकट से ईरान को निकाल सकता है.
अरमान अख़बार ने लिखा था कि ईरान आने वाले दिनों में और मुश्किल में होगा.
इस अख़बार ने संयुक्त राष्ट्र में ईरान के पूर्व राजदूत अली ख़ुर्रम के बयान को छापा था जिसमें उन्होंने कहा था, ''जिस तरह अमरीका ने इराक़ में सद्दाम हुसैन की सरकार को उखाड़ फेंका था उसी तरह से ईरान के लिए भी अमरीका ने योजना बनाई है. अमरीका ने इराक़ में यह काम तीन स्तरों पर किया था और ईरान में भी वैसा ही करने वाला है. पहले प्रतिबंध लगाएगा, फिर तेल और गैस के आयात को पूरी तरह से बाधित करेगा और आख़िर में सैन्य कार्रवाई करेगा.''
अस्वीकरण:
इस लेख में विचार केवल लेखक के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस मंच के लिए निवेश सलाह का गठन नहीं करते हैं। यह प्लेटफ़ॉर्म लेख जानकारी की सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता की गारंटी नहीं देता है, न ही यह लेख जानकारी के उपयोग या निर्भरता के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी है।