简体中文
繁體中文
English
Pусский
日本語
ภาษาไทย
Tiếng Việt
Bahasa Indonesia
Español
हिन्दी
Filippiiniläinen
Français
Deutsch
Português
Türkçe
한국어
العربية
एब्स्ट्रैक्ट:उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पास हो गया है और इसी के साथ उपभोक्ताओं
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पास हो गया है और इसी के साथ उपभोक्ताओं को मिले अधिकार भी अब और व्यापक हो गए हैं.
इस नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के पारित हो जाने के बाद कंपनियों पर इस बात की ज़िम्मेदारी अब और ज़्यादा होगी कि उनके उत्पादों के विज्ञापन भ्रामक न हों और उनके उत्पाद दावों के अनुरुप ही हों.
इसमें यह भी कहा गया है कि अगर कोई सेलीब्रिटी किसी ऐसे उत्पाद का प्रचार करता है, जिसमें दावा कुछ और हो और दावे की सच्चाई कुछ और, तो उस पर भी जुर्माना लगेगा.
यह बिल लंबे समय से लंबित था. लोकसभा में यह बिल 30 जुलाई को ही पारित हो चुका था. अब राज्यसभा से भी पारित हो जाने के बाद यह बिल तीस साल से भी अधिक पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की जगह लेगा.
राज्यसभा में इस बिल को पेश करने के दौरान उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि यह बिल उपभोक्ताओं को जल्दी न्याय दिलवाने में भी मदद करेगा.
राज्यसभा में बिल पेश करने के दौरान रामविलास पासवान ने कहा कि यह बहुत ही दिनों से लंबित विधेयक है.
उन्होंने कहा कि इसके संबंध में बहुत बार प्रयास किए गए लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से यह पास नहीं हो सका.
रामविलास पासवान ने कहा कि यह बिल लोकहित से जुड़ा हुआ है और इस पर किसी को विवाद नहीं होना चाहिए. जितने भी सुझाव आए उन सुझावों को इसमें शामिल किया गया है.
उन्होंने बताया कि यह बिल 2011 में भी आया था. पहले इसे स्टैंडिंग कमेटी में भेजा गया और 2012 में स्टैंडिंग कमेटी ने इस पर अपनी रिपोर्ट दी. इसके बाद एक बार फिर यह बिल साल 2015 में स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा गया और कमेटी ने 37 सिफ़ारिशों के साथ इसे वापस किया. इनमें से सिर्फ़ पांच को छोड़ कर बाकी सारी सिफ़ारिशों को इसमें शामिल कर लिया गया है.
रामविलास पासवान ने कहा कई सदस्यों ने हेल्थकेयर को शामिल करने की मांग की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के कारण उसे इसमें शामिल नहीं किया गया है.
छोड़िए ट्विटर पोस्ट @irvpaswan
आज उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019, राज्यसभा में ध्वनि मत से पास हो गया। इसके लागू हो जाने से उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण और उपभोक्ता विवादों के समय से और प्रभावी प्रशासन और परिनिर्धारण में मदद मिलेगी। @narendramodi pic.twitter.com/1D9ovRs4zm
— Ram Vilas Paswan (@irvpaswan) 6 अगस्त 2019
पोस्ट ट्विटर समाप्त @irvpaswan
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 से उपभोक्ताओं को क्या नया मिलेगा?
भारत में कंज़्यूमर कोर्ट यानी उपभोक्ता अदालत तीन स्तरों पर काम करती है - राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर.
एक आकलन के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर क़रीब 20,304 मुक़दमे लंबित हैं, जबकि राज्य स्तर पर एक लाख 18 हज़ार 319 मामले और ज़िला स्तर पर तीन लाख 23 हज़ार से ज़्यादा मामले अब भी लंबित हैं.
- पहले के क़ानून के अनुसार व्यवस्था थी कि उपभोक्ता जहां से सामान खरीदता था, वहीं शिकायत कर सकता था. अब यह व्यवस्था रहेगी कि कोई भी कहीं से भी अपने मोबाइल पर शिकायत कर सकता है.
- अब इस तरह के मामलों में वक़ील की कोई ज़रूरत नहीं होगी. उपभोक्ता खुद ही अपना केस देख सकता है.
- यदि ज़िला स्तर पर और राज्य स्तर पर उपभोक्ता के पक्ष में फ़ैसला हो गया हो तो राष्ट्रीय स्तर पर दूसरी पार्टी को उसके ख़िलाफ़ जाने का अधिकार नहीं होगा.
- साथ ही एक कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी बनाई गई है जो सामान ख़रीदने से पहले, ख़रीदने के दौरान और ख़रीदने के बाद तीनों तरह की शिकायतों को देखेगी.
- पहले एकल तौर पर कार्रवाई होती थी लेकिन अब क्लास एक्शन लिया जाएगा. उदारण के तौर पर जैसे एक कार है और अगर कार की इंजन में गंभीर तकनीकी खराबी है, तो ये माना जाएगा कि सिर्फ उसी कार का इंजन नहीं बल्कि उस कार के साथ जितनी दूसरी कारें बनी हैं, सभी के इंजन में वही तकनीकी ख़राबी हो सकती है.
- अगर कोई विज्ञापन भ्रामक है तो उसके लिए तीन श्रेणियों को रखा गया है- मैनुफैक्चरर, पब्लिशर और सेलीब्रिटी.
- अधिकारी चाहें तो भ्रामक विज्ञापन के लिए निर्माता और उसे प्रचारित करने वाले पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगा सकती है या फिर दो साल के लिए जेल की सज़ा दे सकती है.
इमेज कॉपीरइटEPAक्या कहते हैं विशेषज्ञ?
राज्यसभा में बिल पेश करने के दौरान रामविलास पासवान ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक बिल साबित होगा. लेकिन क्या विशेषज्ञ भी ऐसा ही मानते हैं?
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने के लिए साल 2014 में एक कमिटी का निर्माण किया गया था जिसकी एक सदस्य पुष्पा गरिमा भी थीं.
पुष्पा गरिमा बताती हैं कि उस कमिटी का एक सुझाव था कि एक नियामक संस्था बनाई जाए ताकि उपभोक्ता को न्याय पाने में आसानी हो और उनके अधिकार कहीं खोएं नहीं.
इस नए बिल में ऐसी एक व्यवस्था है जो निश्चित तौर पर उपभोक्ताओं के हक़ में है.
सेलीब्रिटीज़ पर जुर्माना लगाने की बात का भी वो समर्थन करती हैं.
पुष्पा कहती हैं, “हमारे देश में धड़ल्ले से ऐसे पेय-पदार्थ बिकते हैं जिसमें शुगर की मात्रा बहुत अधिक होती है और इन चीज़ों का प्रचार वो लोग करते हैं जिनके चेहरे पर हम यक़ीन करते हैं. लेकिन यह सही तो नहीं.”
वो कहती हैं कि यह एक बेहतर क़दम है. इससे सेलीब्रिटीज़ को ये समझ आएगा कि वो जिसका प्रचार कर रहे हैं उससे जुड़ी ज़िम्मेदारी समझ कर काम करें.
वहीं एक उपभोक्ता श्रीधर भानु भी इस फ़ैसले का स्वागत करते हैं. वो इसे अच्छा क़दम बताते हैं.
वो कहते हैं, “सबसे अच्छी बात है कि न्याय प्रक्रिया को सरल और तेज़ बनाने की कोशिश की गई है.”
श्रीधर बताते हैं कि उनका ख़ुद का एक मामला कंज़्यूमर कोर्ट में था जिसे ख़त्म होने में चार साल लग गए. ऐसे में यह बिल जो कि 21 दिन में मामले को ख़त्म करने की बात करता है, काफी सराहनीय क़दम है.
हालांकि श्रीधर 21 दिन की बात पर पूरी तरह से यक़ीन नहीं करते हैं लेकिन उनका कहना है कि अगर मामला छह महीने में भी सुलझ जाता है तो भी उपभोक्ताओं को काफी मदद होगी.
वो कहते हैं कि इस नए बिल में जो सबसे अच्छी बात है वो ये कि भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए जो क़दम उठाया गया है वो सबसे बड़ा और सराहनीय क़दम है.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिककर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
अस्वीकरण:
इस लेख में विचार केवल लेखक के व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इस मंच के लिए निवेश सलाह का गठन नहीं करते हैं। यह प्लेटफ़ॉर्म लेख जानकारी की सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता की गारंटी नहीं देता है, न ही यह लेख जानकारी के उपयोग या निर्भरता के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए उत्तरदायी है।